(शिवपुराण के अनुसार)
मनुष्य के जीवन में अनेक समस्यायें हैं जिन्हें दूर करने के लिये वह भिन्न-भिन्न उपाय करता रहता है जैसे धर्म गुरूओं, मुल्ला-मौलवियों, ज्योतिशियों, मठ-मन्दिरों के चक्कर लगाता है। अनेक प्रकार की मान्यतायें उठाता है। तदोपरान्त भी उसको मनोवांछित फल की प्राप्ति नहीं होती।
शिवपुराण में मनुष्य की भिन्न-भिन्न समस्याओं के समाधान, इच्छाओं और आकांक्षाओं की पूर्ति के लिये भगवान् शिव के समक्ष पूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति के साथ पत्रा-पुष्प-अन्न-जल आदि चढ़ाकर अपनी मनोकामना पूर्ति के उपाय बताये गये हैं। भगवान् शिव आशुतोष एवं औढरदानी हैं, तथा ब्रह्मा की लिपी को काटने का अधिकार केवल शिव के पास है। तुलसीदास जी ने (विनय पत्रिका 5.4) में लिख है कि ब्रह्माजी तो पार्वती जी से अपना दुखड़ा रोते हुए कहते हैं-
बाबरो रावरो नाह भवानी।
दानि बड़ो दिन देत दये बिनु, बेद-बड़ाई भानी।।
जिनके भाल लिखी लिपि मेरी, सुख की नहीं निसानी।
तिन रंकन कौ नाक सँवारत हौ आयो नकबानी।।
दुख-दीनता दुखी इनके दुख, जाचकता अकुलानी।
यह अधिकार सौपिये औरई, भीख भली मैं जानी।।
ससांर में माँगने वाला किसी को अच्छा नहीं लगता, उससे सभी घृणा करते हैं। परन्तु भगवान् शंकर तो आक, धतूरा, अक्षत, बिल्वपत्र, जल मात्र चढ़ाने, गाल बजाने से ही संतुष्ट होकर सब कुछ देने को प्रस्तुत हो जाते हैं। इसी से दुखी होकर ब्रह्मा जी तो अपना स्तीफा लेकर देवी पार्वती जी के पास पहुँच गये। तो आइये हम क्यों न अपनी माँग भगवान् भोलेनाथ के समक्ष रख उनकी कृपा प्राप्ति के लिये शिव पुराण में दिये गये पत्र, पुष्प, अन्न, जल एवं दृव्य, आसन, माला तथा स्थान का चयन कर अपनी मनोकमना की पूर्ति हेतु भगवान् शिव से प्रार्थना करें ।
भगवान् शिव पर पुष्प,पत्र एवं नैवेध्य चढ़ाने का फल
सच्चिदानन्दधन परब्रह्म परमेश्वर भगवान् ‘‘शिव’’ ही एक मात्र ऐसे देव हैं, जो स्वयं अपने पास कुछ भी न रखकर अपने भक्तों को सब-कुछ प्रदान कर देते हैं। संसार में अनेक वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिन्हें प्राप्त करने की हम और आप कामना करते हैं एवं सतत् पुरूषार्थ भी करते रहते हैं। तो आईये जाने स्वयं पुरूषार्थ के साथ-साथ भगवान् शिव जी से मनोवांच्छित फल की प्राप्ति के लिये उन्हें कौन-कौन से पुष्प, पत्र, अन्न, जल एवं दृव्य चढ़ायें एवं शिव पूजा हेतु किस आसन का उपयोग करें तथा किस मन्त्र का जप करें जिससे हमें इसी जीवन में धर्म, अर्थ एवं काम के साथ-साथ कैवल्य मोक्ष की प्राप्ति भी हो सके।
-: पुष्प एवं पत्र चढ़ाने का फल :-
यू तो भगवान् शिव भोलेनाथ एवं आशुतोष हैं। इसलिये उन्हें श्रद्धापूर्वक चढ़ाये गये पुष्पों एवं पत्रों को वे स्वीकार कर लेते हैं। किन्तु शास्त्रों में उन्हें चढ़ाने की एक प्रक्रिया निर्धारित की गयी है। अतः यदि साधक उसका पालन करता है तो वह पूर्ण फल का भागी होता है। फूल एवं पत्तों को दाहिने हाथ की हथेली को ऊपर की ओर रखकर मध्यमा, अनामिका और अँगूठे की सहायता से चढ़ाना चाहिये। फूल, फल एवं पत्ते जैसे उगते हैं, उन्हें वैसे ही चढाना चाहिये। अर्थात् उत्पन्न होते समय यदि उनका मुख ऊपर की ओर होता है तो चढ़ाते समय उसका मुख ऊपर की ओर ही रखना चाहिये। केवल बिल्वपत्र नीचे मुख कर चढ़ाना चाहिये। भगवान् शिव पर चढ़े हुए फूल को अँगूठे एवं तर्जनी की सहायता से उतारना चाहिये।
जो फूल अपवित्र बर्तन में रख दिया गया हो, अपवित्र स्थान में उत्पन्न हो, आग से झुलस गया हो, कीड़ों द्वारा छिद्रित हो, जिनकी पँखुड़ियाँ बिखर गयी हों, जो पृथ्वी पर गिर पड़ा हो, जो पूर्णतः खिला न हो, जिसमें खट्टी गंध या सड़ाँध आती हो, ऐसे पुष्पों को नहीं चढ़ाना चाहिये। कलियों को चढ़ाना मना है। किन्तु यह निषेध कमल पर लागू नहीं होता। फूल को जल में डुबाकर नहीं धोना चाहिये केवल जल से उसका प्रोक्षण कर देना चाहिये। जो फूल, पत्ते और जल, बासी हो गये हों, उन्हें देवताओं पर न चढ़ायें। बिल्वपत्र, तुलसीदल और गंगाजल बासी नहीं होते। तीर्थों का जल भी बासी नहीं होता। वस्त्र, यज्ञोपवीत और आभूषण तथा मणि, रत्न, सुवर्ण आदि से बनाये गये फूल बासी नहीं होते, इन्हें प्रोक्षण कर चढ़ाना चाहिये। बिल्वपत्र भगवान् शंकर को बहुत प्रिय है, अतः उसे निषिद्ध काल यथा चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या तथा सोमवार को एक दिन पहले के रखे हुए बिल्वपत्र चढ़ा सकते हैं। शास्त्रानुसार तो यदि नूतन बिल्वपत्र न मिल सके तो चढ़ाये हुए बिल्वपत्रों को ही धोकर बार-बार चढ़ा सकते हैं। माली के घर में रखे हुए फूलों में बासी होने का दोष नहीं होता। आईये भगवान् शिव पर विभिन्न पुष्प-पत्रों को चढ़ाने के फल को संक्षेप में जाने।
1. लक्ष्मी की प्राप्ति के लिये: कमल के फूल से शिव की पूजा करने पर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। (इसलिये भगवान् विष्णु नित्य शिव पर कमल चढ़ाते हैं क्योंकि उन्हें संसार को पालने करने के लिये धन सम्पदा की आवश्यकता होती है।)
2. पापों के नाश के लिये: बिल्वपत्र से शिव की पूजा करने से समस्त पापों का नाश होता है। तथा लक्ष्मी की भी प्रप्ति होती है। यदि बिल्वपत्रों को बिल्वाष्टक स्तोत्र के साथ चढ़ायें तो अन्नत कोटि फल की प्राप्ति होती है।
3. मोक्ष के लिये: शमी-पत्रों से शिव का पूजन करें, अथवा एक लाख दर्भों द्वारा शिव का पूजन करें।
4. आयु की इच्छा के लिये: एक लाख दूर्वाओं द्वारा शिव का पूजन करें।
5. पुत्र की अभिलाषा हो तो: धतूरे के फूलों से पूजा करें। लाल डंठल वाला धतूरा पूजन में शुभदायक माना गया है।
6. भोग और मोक्ष के लिये: लाल और सफेद आक से शिव की पूजा करें।
7. रोगों का उच्चाटन करने के लिये: करवीर के फूलों से शिव जी का पूजन करें ।
8. वाहन की प्राप्ति के लिये: चमेली के फूलों से शिव जी का पूजन करना चाहिये।
9. भगवान् विष्णु जी की भक्ति के लिये: अलसी के फूलों से महादेव जी की पूजा करें।
10. शुभ लक्षणा पत्नी के लिये: बेला के फूलों से शिव जी की पूजा करना चाहिये।
11. अन्न की पूर्ती के लिये: जूही के फूलों से शिव जी की पूजा करने से घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती ।
12. वस्त्र प्राप्ति के लिये: कनेर के फूलों से शिव की पूजा करें।
13. मन को निर्मल बनाने के लिये: शेफालिका या सेदूआरि के फूलों से शिव का पूजन करें।
14. सुख सम्पत्ति की वृद्धि के लिये: हरसिंगार के फूलों से पूजा करे।
15. सुखों और सम्पूर्ण फलों की प्राप्ति: अरहर के पत्तों से भगवान् शिव जी का शृंगार करना चाहिये।
चम्पा, कदम्ब, केतकी और केवड़े को भगवान् शिव जी पर नहीं चढ़ाना चाहिये। इसके चढ़ाने से भगवान् शिव अप्रसन्न होते हैं। कुछ साधकगणों द्वारा यह प्रश्न उठाया गया कि ‘‘शिवपुराण में चम्पा के पुष्पों को भगवान् शिव का चढ़ाना निषेध है।‘‘ जबकि आदि शंकराचार्य जी द्वारा रचित ‘‘शिव मानस स्तोत्र‘‘ में लिखा है, कि चम्पा के पुष्प भगवान् शिव पर चढ़ाये जा सकते हैं। जैसे –
‘‘जातीचम्पकबिल्वपत्रारचितं पुष्पं च धूपं तथा‘‘
अर्थात् जुही, चम्पा और बिल्व पत्र से रचित पुष्पांजलि तथा धूप और दीप आदि मानसिक रुप से तैयार कर समर्पित करें।
इसका परिहार वीर मित्रोदयकार ने काल विशेष के द्वारा इस प्रकार किया है –
‘‘कदम्बैश्चम्पकैरेवं नभस्ये सर्वकामदा‘‘
’देवीपुराण’
अर्थात् भाद्रपद मास में कदम्ब ओर चम्पा से शिव का पूजन करने से सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं।
इस प्रकार भाद्रपद मास में ‘विधि’ चरितार्थ हो जाती है। और भाद्रपद मास से भिन्न मासों में निषेध चरितार्थ हो जाता है। अतः दोनों वचनों में कोई विरोध नहीं रह जाता।
शिव पुराण की रुद्र संहिता के प्रथम खण्ड के अध्याय 14 के अनुसार यदि फूलों और पत्रों को एक-एक लाख की संख्या में भगवान् शिव जी के ऊपर चढ़ाया जाय तो भगवान् शिव प्रचुर फल प्रदान करते हैं। प्राचीन पुरूषों ने बीस फूलों का एक प्रस्थ बताया है। और एक प्रस्थ एक सहस्त्र फूलों के बराबर होता है। अर्थात् बीस फूलों का एक गुलदस्ता बनाकर चढ़ाने से एक सहस्त्र (हजार) फूलों को चढ़ाने का पुण्य मिलता है। अतः इस मान से एक-एक लाख पुष्पों एवं पत्रों की गणना कर शिव पर चढ़ाने का विधान शास्त्रों में उल्लेखित है।
शास्त्रों में फूलों को चढ़ाने से मिलने वाले पुण्य को बताते हुए कहा है, कि दस सुवर्ण मुद्राओं के बराबर दान का फल भगवान् शिव पर एक आक का फूल चढ़ाने से मिल जाता है। हजार आक के फूलों के बराबर एक कनेर का फूल, हजार कनेर के फूलों को चढ़ाने के बराबर एक बिल्वपत्र, हजार बिल्वपत्र के बराबर एक गूमाफूल (द्रोण-पुष्प), एक हजार गूमाफूल से बढ़कर एक चिचिड़ा (अपमार्गों), हजार चिचिड़ों से बढ़कर एक कुश का फूल, हजार कुश पुष्पों से बढ़कर एक शमी का पत्ता, हजार शमी के पत्तों से बढ़कर एक नील कमल, हजार नील कमलों से बढ़कर एक धतूरा, हजारा धतूरों से बढ़कर शमी का फूल होता है।
भगवान् शिव पर अन्न चढ़ाने का फल
1. लक्ष्मी प्राप्ति के लिये: चावल चढ़ाना चाहिये (चावल अखण्डित होना चाहिये)
2. पूजा का पूरा फल प्राप्त करने के लिये: शिव जी के ऊपर गन्ध, पुष्प आदि के साथ एक श्रीफल चढ़ाकर धूप आदि के साथ निवेदन करना चाहिये।
3. बड़े-बडे़ पापों का नाश करने के लिये: तिल द्वारा शिव जी की पूजा करें अथवा ”ऊँ नमः शिवाय“ या महामृत्युंजय मन्त्र के साथ तिलों की आहूती देना चाहिये।
4. स्वर्गीय सुखों की प्राप्ति के लिये: जौ द्वारा शिव की पूजा करें ।
5. धर्म, अर्थ, काम और भोग के लिये: कँगनी (प्रियंगु) द्वारा शिव जी की पूजा करने से समस्त सुखों की प्राप्ति होती है।
भगवान् शिव पर जल एवं दृव्य चढ़ाने का फल
1. सुख एवं संतान की वृद्धि के लिये: जल धारा द्वारा शिव जी का पूजन करें।
2. नपुंसकता को दूर करने के लिये: घी से शिव जी की भली भाँति पूजा करना चाहिये।
3. मन्द बुद्धि या जड़ बुद्धि होने पर: शर्करा मिश्रित दूध की धार भगवान् शिव जी पर चढ़ानी चाहिये। ऐसा करने से वह व्यक्ति बृहस्पति के समान उत्तम बुद्धि सम्पन्न हो जाता है।
4. गृह कलेश को दूर करने के लिये: उपरोक्तानुसार शर्करा मिश्रित दुग्ध धारा चढ़ाना चाहिये।
5. भोगों की वृद्धि के लिये: सुवासित (सुगंधित) तेल से पूजा करना चाहिये ।
6. राजयक्ष्मा का रोग दूर करने के लिये: शहद से शिव जी का पूजन करना चाहिये
7. सम्पूर्ण आनन्द की प्राप्ति के लिये: ईख के रस की धारा से शिव का पूजन करें।
8. भोग और मोक्ष दोनों फलों के लिये: गंगा जल की धारा से पूजा करे।
9. केवल मोक्ष के लिये: नर्मदा जल की धारा से शिवजी का पूजन करें।
नोट : ये सब जो-जो धाराएँ एवं दृव्य बताये गये हैं, इन सब को महामृत्युंजय मन्त्र से चढ़ाना चाहिये । और जप पूर्ण होने पर ग्यारह ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये ।)
शिव पूजा के लिये आसन का चयन
1. मुक्ति के लिये: मृग चर्म के आसन पर बैठकर पूजा करें।
2. लक्ष्मी प्राप्ति के लिये: व्याघ्र चर्म अथवा वस्त्र के आसन पर बैठकर पूजा करें।
3. इच्छा पूर्ति के लिये: ऊनी वस्त्र के आसन पर पूजा करना चाहिये ।
4. ज्ञान की प्राप्ति के लिये: कुश के आसन पर पूजा करें ।
5. आरोग्यता के लिये: पत्र के आसन पर पूजा करें।
नोट : पाषाण के आसन पर बैठकर पूजा करने से दुःख और काष्ठ के आसन पर बैठकर पूजा करने से अनेक रोग होते हैं। पृथ्वी पर बिना किसी आसन के बैठकर पूजा करने से मन्त्र सिद्ध नहीं होता ।
उत्तर अथवा पूर्व को मुख करके जप और पूजा करना चाहिये। आसन पर बैठकर बाँये चरण की एडी को गुदा के स्थान पर रखें और दाहिना चरण उपस्य (जंघा) के उपर रखकर बेठें। यह उत्तम और अतिश्रेष्ठ ”योनि बन्ध आसन“ कहलाता है। इसी मुद्रा से मन्त्र सिद्ध होते हैं। मन्त्र जप का उत्तम काल ऊषा काल से लेकर मध्यान काल तक माना गया है। किन्तु नित्य जप करने वाले साधक कभी भी मन्त्र जप कर सकते हैं।
शिव पूजा हेतु माला का चयन
1. साम्राज्य प्राप्ति के लिये: स्फटिक की माला पर जप करना चाहिये।
2. धन की प्राप्ति के लिये: पुत्रजीवा या जियापोते की माला से जप करना चाहिये।
3. आत्मज्ञान के लिये: कुश की ग्रंथी की माला पर जप करना चाहिये ।
4. सम्पूर्ण कार्यों की सिद्धि के लिये: रुद्राक्ष की माला पर जप करना चाहिये।
5. व्यक्ति को वश में करने के लिये: प्रवाल (मूंगा) की माला पर जप करना चाहिये ।
6. मोक्ष के लिये: ऑवलों के फलों की माला पर जप करें।
7. विद्याओं की प्राप्ति के लिये: मोतिओं की माला पर जप करना चाहिये ।
8. स्त्रियों को वश में करने के लिये: माणिक्य की माला पर जप करे।
9. शत्रु को भय-भीत करने के लिये: नील मरकत मणि की माला पर जप करना चाहिये।
10. श्री एवं लक्ष्मी प्राप्ति के लिये: सोने की बनी माला पर जप करें।
11. मनोवाँच्छित कन्या प्राप्ति के लिये: चाँदी से बनी माला पर जप करें ।
12. सम्पूर्ण कामनाओं के लिये: पारे से बनी माला पर जप करें
नोट : माला के मनकों (दानों) की संख्या 108 या 54 अथवा 27 ही होना चाहिये। इससे अधिक अथवा कम दानों की माला न तो धारण करना चाहिये और न ही जप करना चाहिये । ”शिवा मिशन न्यास“ आप सभी से केवल रुद्राक्ष की माला पर ही जप करने की अनुशंसा करता है। क्योंकि इस पर किया गया जप कभी निष्फल नहीं होता ।
मन्त्र जप का फल एवं विधान
1. बिना माला के अँगुली पर जप: एक गुना फल दायक होता है।
2. शँख के मनकों की माला पर जप: सौ गुना अधिक फल दायक होता है।
3. मूगों की माला से जप: एक हजार गुना अधिक फल दायक होता है।
4. स्फटिक की माला से जप: दस हजार गुना अधिक फल दायक होता है।
5. मोतियों की माला से जप: एक लाख गुना अधिक फल दायक होता है।
6. कमल गट्टे की माला से जप: दस लाख गुना अधिक फल दायक होता है।
7. स्वर्ण के बने मनकों से जप: एक करोड़ गुना अधिक फल दायक होता है।
8. रुद्राक्ष की माला से जप: अनन्त गुना अधिक फल दायक होता है।
मन्त्र जप तीन प्रकार का होता है – वाचिक, उपांशु और मानसिक। वाचिक-जप धीरे-धीरे बोलकर होता है। उपांशु-जप इस प्रकार किया जाता है जिसे दूसरे न सुन सके। मनासिक-जप में जीभ और ओष्ठ नहीं हिलते। तीनों जपों में पहले की अपेक्षा दूसरा और दूसरे की अपेक्षा तीसरा प्रकार श्रेष्ठ और अधिक फलदायी होता है। जप करते समय माला को हृदय के निकट रखना चाहिये। कभी भी माला को खुली रखकर जप-कर्म नहीं करना चाहिये। अन्यथा आपके पुण्य को देवता ले लेते हैं। जप करते समय दाहिने हाथ को जपमाली में डालकर अथवा सूखे कपड़े से ढ़क लेना चाहिये। जप-कर्म में संलग्न साधक को चाहिये कि वह माला को अनामिका अँगुली पर रखकर अँगूठे से स्पर्श करते हुए मध्यमा अँगुली से जपे, क्योंकि शिव पुराण के अनुसार अँगूठे को मोक्षदायक, तर्जनी अँगुली को शत्रुनाशक, मध्यमा अँगुली को धन दायक और अनामिका को शाँति दायक माना गया है। कनिष्ठका अँगुली जप के फल को नष्ट करने वाली मानी गई है। जप करते समय हिलना, डोलना, बोलना निषेध माना गया है, क्योंकि ऐसा करने से शरीर में रोग और विकार उत्पन्न होते हैं। यदि जप करते कभी ऐसा हो जाय तो भगवान् का स्मरण कर फिर से जप करना चाहिये। यदि माला जप करते समय गिर जाय तो एक सौ आठ बार मन्त्र का जप और करे। यदि माला पैर पर गिर जाय तो उसे धोकर उस दिन के मन्त्र जप के लक्ष्य से दुगना जप करे।
जिस स्थान पर जप करे उस स्थान की मृत्तिका को जप के पश्चात् मस्तक पर लगायें, अन्यथा उस जप के फल को इन्द्र ले लेते हैं। जप कर्म पूर्ण होने पर तुरन्त आसन से न उठें एवं कुछ समय तक शान्त भाव से बैठकर भगवान् शिव से जप के पूर्ण फल की प्राप्ति हेतु प्रार्थना करें। जप कर्म से उठने के तुरन्त बाद आसन को लपेट कर रख दें अन्यथा आपके पुण्य को देवता लोग ले लेते हैं।
मन्त्र जप में स्थान का महत्व एवं फल
1. घर पर किया गया जप: एक गुना फल दायक होता है ।
2. घर पर किया गया लिखित जप: सौ गुना अधिक फल दायक होता है ।
3. गौशाला में किया गया जप: घर पर किये गये जप से सौ गुना अधिक फल दायक होता है ।
4. पवित्र वन या उद्यान में जप: एक हजार गुना अधिक फल दायक होता है ।
5. पवित्र पर्वत पर किया गया जप: दस हजार गुना अधिक फल दायक होता है ।
6. पवित्र नदी के तट पर किया गया जप: एक लाख गुना अधिक फल दायक होता है।
7. शिवालय (स्वंयभू-लिंग) में जप: दस लाख़ गुना अधिक फल दायक होता है।
8. शिव के निकट किया गया जप: अनन्त गुना यानि मोक्ष दायक होता है।
पूजा सामग्री के रखने का स्थान
पूजन की किस वस्तु को किधर रखना चाहिये इस बात का भी शास्त्रों में उल्लेख किया गया है। इसके अनुसार जल से भरा पात्र, घंटा, धूपदानी और तेल का दीपक बाँयी ओर रखना चाहिये। इसी प्रकार घृत का दीप और जल से भरा शँख दाँयी ओर रखना चाहिये। इष्टदेव के सामने कुंकुम, केसर और कपूर के साथ घिसा हुआ गाढ़ा चन्दन रखना चाहिये तथा भगवान् के सामने जल का चौकोर घेरा डालकर नैवेध्य की वस्तुयें रखना चाहिये।