आज के भौतिकतावादी युग में समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग विशेषकर युवा वर्ग धर्म में रूचि होते हुए भी समयाभाव का बहाना बनाकर पूजा-पाठ में रूचि नहीं लेता है, किन्तु उसे यह ज्ञात नहीं है कि यह पूजा-पाठ उसके दैहिक, दैविक एवं भौतिक तापों को निर्मूल करने का एक अमोघ अस्त्र है। यदि आप प्रतिदिन पूजा-पाठ को अन्य दैनिक कार्यों के साथ-साथ सम्मिलित कर लेते हैं, तो आपके जीवन में आने वाली सफलता, सुख एवं शान्ति बिना प्रयास के स्वयंमेव आने लगेगी, किन्तु हमें यह भी समझना होगा कि इस पूजा-पाठ का लाभ आपको तत्काल प्राप्त नहीं होता ये कोई फास्ट फूड नहीं है। ये लॉगटर्म पॉलिसी है। ये शनैः शनै आपकी श्रद्धा एवं विश्वास पर निर्भर करती है, ये आत्मानुभूति है, जो स्वयं आपके अन्दर प्रकट होती है। और हाँ एक बात और आप रूपया पैसा देकर किसी दूसरे से अपने पक्ष में मन्त्र जप कराने का प्रयास करेंगे तो लाभ संदेहास्पद है। धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष प्राप्ति के लिये पूजा-पाठ में लगने वाला श्रम तो आपको स्वयं ही करना होगा।

शिवा मिशन न्यास द्वारा न्यूनतम् दैनिक पूजा को 24 घन्टे में से चार चरणों में विभाजित किया गया है। इस पूजा का विभाजन इस उद्देश्य को लेकर किया गया है कि इस पूजा में लगने वाले 30 से 45 मिनिट के समय में साधक को 24 घन्टे की पूजा का लाभ प्राप्त हो सके।

प्रथम चरण की पूजा

इस चरण का प्रारम्भ रात्रि विश्राम के बाद सुबह उठते ही शयन कक्ष में नित्य क्रिया के पूर्व ही प्रारम्भ होता है। इस प्रथम चरण की पूजा में आपको केवल तीन मिनिट का समय लगता है।

  1. 108 बार ‘ऊँ नमः शिवाय महामन्त्र का मोन रहकर बिस्तर पर लेटे रहकर मन ही मन वाचिक जप करना ।
  2. ‘ऊँ नमः शिवाय’ महामन्त्र के वाचिक जप के पश्चात् छः बार द्वादश ज्योतिर्लिंग का स्मरण करें, उससे आपके सात जन्मों के पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार छः बार स्मरण करने से आप दैनिक क्रिया के पूर्व ही 42 जन्मों के पाप को नष्ट कर लेते हैं।

द्वितीय चरण की पूजा

प्रातःकाल की दैनिक क्रिया से निवृत होकर स्नान व स्वल्पाहार आदि लेकर प्रातः 8ः30 से 9ः30 के मध्य आप द्वितीय चरण की पूजा आरम्भ कर सकते हैं। इस पूजा में आपको 20 से 30 मिनिट का समय लगेगा।

  1. सर्वप्रथम एक सुखासन पर बैठकर भगवान् शिव का ध्यान निम्न प्रकार करना चाहिये कि ‘‘कल्याणदाता भगवान् शिव कमल के आसन पर विराजमान हैं, उनका मस्तक श्री गंगाजी तथा चन्द्रमा की कला से सुशोभित है, उनकी बाँई जाँघ पर आदि शक्ति भगवती उमा बैठी हैं। वहाँ खड़े हुए बड़े-बड़े प्रमथगण भगवान् शिव की शोभा बढ़ा रहे हैं। महादेव जी अपने चार हाथों में मृगमुद्रा, टंक, वर तथा अभय की मुद्राएँ धारण किये हुए हैं।’’ इस प्रकार सदा सब पर अनुग्रह करने वाले भगवान् सदाशिव का बारम्बार स्मरण करते हुए पूर्वाभिमुख होकर मानसिक पूजा करना है।

    इस शिव मानस पूजा में हम भगवान् शिव से प्रार्थना करते हैं कि हमारे द्वारा मानसिक रूप से तैयार की गयी पूजोपहार सामग्री को वास्तविक रूप में मानकर ग्रहण करें। विभिन्न द्रव्य पदार्थ कपूर आदि जो सब मन के द्वारा ही बनाये गये हैं, उन्हें स्वीकार करें। विभिन्न वाद्य यन्त्रों के साथ नाना विधि की गयी स्तुतियाँ जो सब मेरे द्वारा केवल संकल्प से ही आपको समर्पित की गयी हैं, उन्हें वास्तविक रुप में मानकर मेरी पूजा ग्रहण करें। साथ ही मेरे द्वारा सम्पूर्ण विषय भोगों की जो रचना की है उसे आप अपनी पूजा समझें, निद्रा को समाधि समझें। मेरे चलने-फिरने को मेरी परिक्रमा समझें एवं मैं जो भी बोलूँ उसे आप स्तुति समझें इस प्रकार मैं जो-जो भी कार्य करुँ उन सबको आप अपनी आराधना ही समझें। तथा मेरे किये हुए समस्त अपराधों को क्षमा करें।

  2. शिव मानस पूजा के बाद आप 108 बार ‘ऊँ नमः शिवाय’ महामन्त्र का लिखित जप एक सादा लाइनदार कापी पर लाल स्याही से करें। ‘ऊँ नमः शिवाय’ मन्त्र का माहात्म्य शिव पुराण की विद्येश्वर संहिता में दिया गया है। जिसके अनुसार एक बार लिखा गया ‘ऊँ नमः शिवाय’ मन्त्र का पुण्य वाचिक जप से 100 गुना अधिक होता है तथा एक बार लिखे गये ‘ऊँ नमः शिवाय’ मन्त्र से एक बिन्दु लिंग की स्थापना का पुण्य भी प्राप्त होता है अतः ऐसे महान् फल को भला कौन मनुष्य प्राप्त करना नहीं चाहेगा। इसलिये शिवा मिशन न्यास ने कम-से-कम 108 बार ‘ऊँ नमः शिवाय’ मन्त्र के लिखित जप को दैनिक पूजा में सम्मिलित किया है।
  3. ‘ऊँ नमः शिवाय’ महामन्त्र का 108 बार लिखित जप करने के बाद आपको कम-से-कम दो माला ‘ऊँ नमः शिवाय’ महामन्त्र का जप करना है। यह जप यदि आप रुद्राक्ष की माला पर करेंगे तो उसका फल साधारण जप के फल से एक करोड़ गुना अधिक होगा। अतः विद्वान पुरुषों को चाहिये कि वे ‘ऊँ नमः शिवाय’ महामन्त्र का जप रुद्राक्ष की माला पर ही करें। माला का जप आप दाहिने हाथ की दो अँगुली क्रमशः मध्यमा एवं अनामिका के साथ अँगुष्ठ लगाकर करें। कनिष्ठिका अँगुली जप के फल को नष्ट करने वाली मानी गयी है एवं तर्जनी अँगुली को शत्रु नाशक माना गया है। अतः साधक को मध्यमा व अनामिका के साथ अँगुष्ठ द्वारा जप करना चाहिये क्योंकि अँगुष्ठ के बिना किया हुआ जप निष्फल होता है।

    माला से जप करते समय आपको कुछ विशेष ध्यान रखना आवश्यक है, जैसे आप जिस आसन पर बैठकर जप करें। वह ताप का कुचालक होना चाहिये, अन्यथा मन्त्र जप से उत्पन्न ऊर्जा का पूरा-पूरा लाभ आपको प्राप्त नहीं होगा। क्योंकि मन्त्र ऊर्जा पृथ्वी में स्थानान्तरित हो जायेगी। इसके साथ ही माला का जप करते समय माला को हृदय के पास रखना चाहिये तथा खुली माला से जप न करते हुए कपड़े की थैली में बन्द कर जप करना चाहिये। क्योंकि खुली माला से जप करने पर उसके पुण्य के भाग को देवता लोग चुरा लेते हैं। ऐसा शिव पुराण में उल्लेखित किया गया है। जप पूर्ण हो जाने पर आप तुरन्त ही उस आसन से न उठें, एक दो मिनिट शान्त भाव से शिव का ध्यान करें एवं प्रार्थना करें कि मन्त्र जप का पूर्ण पुण्य लाभ आपको प्राप्त हो, तदोपरान्त उठने के बाद आसन को बिछा हुआ न छोड़ें उसे घड़ी कर के ही रखें अन्यथा देवता लोग उस आसन पर बैठ कर आपका पुण्य लाभ चुरा सकते हैं। अतः आपसे अनुरोध है कि इन छोटी-छोटी किन्तु अत्यन्त महत्वपूर्ण बातों का बड़ी सावधानी से पालन करें।

  4. ‘ऊँ नमः शिवाय’ मन्त्र जप के बाद कम-से-कम 27 बार गणेश जी के मन्त्र का जप करे, क्योंकि इस मन्त्र के जप से आपके दिन-प्रतिदिन के कार्य में आने वाली छोटी-छोटी बाधाएँ स्वयं दूर होने लगेंगी। गणेश जी का मन्त्र निम्न प्रकार है –

    ‘‘ऊँ गं गणपतेय नमः’’

  5. गणेश जी के मन्त्र जप के बाद 27 बार सरस्वती जी के मन्त्र का जप करें। इस मन्त्र के जप से आपकी वाणी एवं लेखनी में आप स्वयं अभूतपूर्व परिवर्तन अनुभव करेंगे।

    ‘‘ऊँ ऐं ऊँ ’’

  6. सरस्वती जी के मन्त्र जप के बाद 27 बार महामृत्युन्जय मन्त्र का जप अवश्य करें। इस मन्त्र के जप से जहाँ एक ओर आपको अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा वहीं दूसरी ओर कई क्रूर ग्रह जैसे शनि, राहु, केतु आदि की वक्र दृष्टि से होने वाले अमंगल से आपकी रक्षा होगी। इस मन्त्र के जप से आपकी अनेंक असाध्य रोगों से रक्षा होगी और यदि ये रोग आपके शरीर में घर कर गये हैं, तो धीरे-धीरे इनसे मुक्ति भी मिलेगी। यह मन्त्र अत्यन्त प्रभावशाली है, और आसन्न आयी हुई मृत्यु को भी हटाने की क्षमता रखता है।

इस प्रकार दैनिक न्यूनतम् पूजा का द्वितीय चरण यहाँ पूर्ण होता है। किन्तु यदि आपके पास समय है तो आप अमोघ शिव कवच का पाठ भी कर सकते हैं। इस कवच के पाठ में पाँच मिनिट का समय लगता है। किन्तु यह कवच है बड़ा अदभुत् क्योंकि यह अमोघ शिव कवच सब पापों को दूर करने वाला, सारे अमंगलों को, विघ्न-बाधाओं को हरने वाला, परम पवित्र, जयप्रद और सम्पूर्ण विपत्तियों का नाशक माना गया है, यह परम हितकारी है, सब प्रकार के भयों को दूर करता है, सब अंगों की कवच बनकर रक्षा करता है। आपके विरुद्ध की गयी किसी भी तन्त्र-मन्त्र की क्रिया से आपकी रक्षा करता है। इसके प्रभाव से क्षीणायु, मृत्यु के समीप पहुँचा हुआ महान् रोगी मनुष्य भी शीघ्र निरोगता को प्राप्त करता है और उसकी दीर्घायु हो जाती है। अर्थाभाव से पीड़ित मनुष्य की सारी दरिद्रता दूर हो जाती है और उसको सुख-वैभव की प्राप्ति होती है। पापी महापातक से छूट जाता है, और इसका श्रद्धापूर्वक धारण करने वाला निष्काम पुरुष देहान्त के बाद दुर्लभ मोक्ष पद को प्राप्त होता है।

तृतीय चरण की पूजा

समय सांय 6ः30 से 7ः30 के मध्य शीत ऋतु में

समय सांय 7ः30 से 8ः30 के मध्य ग्रीष्म ऋतु में

सांयकाल के समय आपके घर में जो भी जैसा भी पूजा का स्थान है जहाँ आप अपने इष्ट भगवान् शिव को परिवार सहित विराजमान कराते हैं, की आरती नित्य-प्रतिदिन की जाना आवश्यक है। इस आरती में आपको 05 से 07 मिनिट का समय लग सकता है। आरती के समय आप घी का दीपक अवश्य प्रज्वलित करें, क्योंकि आरती को भगवान् शिव के चारों ओर घुमाने से हमारे जन्म-जन्मान्तर के पाप नष्ट होते हैं। तथा दीपक की ज्योति देखने और श्रद्धापूर्वक दोनों हाथों से आरती लेने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहाँ हम यह बताना आवश्यक समझते हैं कि आपको आरती करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिये। जैसे दीपक की बत्तियों की संख्या सम अर्थात् 2, 4, 6, 8, 10, 12 आदि नहीं होनी चाहिये और न ही तीन, नौ अथवा तेरह जैसी संख्याएँ। अब आगे क्रमानुसार गायी जाने वाली आरती/स्तुति करे।

  1. सर्वप्रथम गणेश जी की स्तुति करना चाहिये।
  2. गणेश जी की आरती के बाद माँ दुर्गा जी की स्तुति करें।
  3. दुर्गा जी की स्तुति के बाद शिव पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ करना चाहिये

इस प्रकार आपकी तृतीय चरण की पूजा सम्पन्न हुई। यदि आप के शिवालय (पूजा गृह) में नर्मदा जी के शिवलिंग हैं तो आप ‘‘नर्मदाष्टक’’का पाठ भी अवश्य करें। यह नर्मदाष्टक आदि शंकराचार्य जी द्वारा कृत होकर भोग और मोक्ष प्रदान करने वाला है।  यहाँ शिवा मिशन न्यास आपसे अनुरोध अवश्य करना चाहता है, कि यदि आपके पूजा गृह में नर्मदा जी के शिवलिंग नहीं हैं तो उन्हें ग्वालियर स्थित न्यास के संस्थान ‘‘रुद्राक्ष’’ से प्राप्त कर सकते हैं। क्योंकि ब्रह्माण्ड में केवल यही एक शिवलिंग है जिसमें भगवान् शिव सदैव निवास करते हैं। इसके शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा करने की आवश्यकता नहीं होती।

चतुर्थ चरण की पूजा

यह पूजा उस समय शुरु होती है जब आप दिन भर का कार्य पूर्ण कर विश्राम हेतु शयन कक्ष में जाते है। उस समय निद्रा के पूर्व बिस्तर पर आपको दो मिनिट की पूजा करना चाहिये। यह पूजा है तो केवल दो मिनिट की किन्तु इसका पुण्य बड़ा महान् बताया गया है। क्योंकि रात्रि में जब आप ‘ऊँ नमः शिवाय’ मन्त्र का जप करते हैं, तो आप जितने भी घन्टे रात्रि में सोते हैं। उस पूरे समय की गणना यह मानते हुए कि आपने ‘ऊँ नमः शिवाय’ मन्त्र का जाप किया है, की जाती है, ऐसा लगभग सभी ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है। इसलिये ही शिवा मिशन न्यास ने रात्रि में सोते समय और प्रातः उठते समय ‘ऊँ नमः शिवाय’ मन्त्र जप का विधान न्यूनतम् दैनिक पूजा में सम्मिलित किया है। रात्रि के समय दो मिनिट की जाने वाली पूजा निम्न प्रकार है।

  1. छः बार द्वादश ज्योतिर्लिंग के श्लोक का स्मरण् करें, इसके स्मरण से सोने के पूर्व आपके 42 जन्मों के पाप पुनः नष्ट हो जायेंगे, इस प्रकार आप 84 लाख योनियों में से प्रतिदिन 84 योनियों में किये गये पापों से मुक्ति प्राप्त करते हुऐ चले जायेंगे और एक दिन पूर्ण निष्काम होकर मोक्ष के भागी बनेंगे।
  2. द्वादश ज्योतिर्लिंग के स्मरण् के बाद 108 बार ‘ऊँ नमः शिवाय’ महामन्त्र का मन ही मन मौन रहकर जाप करें, यदि यह मन्त्र सोते समय तक जपा जाये तो अति उत्तम रहेगा।

इस प्रकार शिवा मिशन न्यास द्वारा न्यूनतम् दैनिक पूजा को 24 घन्टे में से चार चरणों में विभाजित किया है। इस दैनिक पूजा का विभाजन इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये किया गया है कि एक गृहस्थ व्यक्ति भी इस पूजा में लगने वाले केवल 30 से 45 मिनिट के समय में ही 24 घन्टे की पूजा का लाभ प्राप्त कर सके।

शिवा मिशन न्यास (रजि.) ग्वालियर

 

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