प्रश्न-1. सृष्टि की उत्पत्ति के वर्णन में विभिन्नता क्यों पाई जाती है। शैव पुराणों में शिव से, वैष्णव पुराणों में विष्णु, कृष्ण या राम से और शाक्त पुराणों में देवी से सृष्टि की उत्पत्ति बतलाई गयी है। जबकि अठारहों पुराण एक ही महर्षि वेद व्यास के रचे हुए माने जाते है। फिर इसका क्या कारण है ? एक ही पुरुष द्वारा रचित भिन्न- भिन्न पुराणों में एक ही खास विषय में इतना भेद क्यों है ? इसका क्या हेतु है ? [आशुतोष प्रताप सिंह (बेंगलूरू)]
उत्तर-1. वेदव्यास जी बड़े भारी तत्वदर्शी विद्वान और सृष्टि के समस्त रहस्य को जानने वाले महापुरुष थे। उन्होंने देखा कि वेद-शास्त्रों में ब्रह्मा, विष्णु, महेश, शक्ति आदि ब्रह्म के अनेक नामों का वर्णन होने से वास्तविक रहस्य को न समझकर अपनी-अपनी रूचि और बुद्धि की विचित्रता के कारण मनुष्य इन भिन्न-भिन्न नाम रूप वाले एक ही परमात्मा को अनेक मानने लगे हैं, और नाना मत- मतान्तरों का विस्तार होने से असली तत्व का लक्ष्य छूट गया है। इस अवस्था में उन्होंने सबको एक ही परम लक्ष्य की ओर मोड़कर सर्वोत्तम मार्ग पर लाने के लिये एवं श्रुति, स्मृति आदि का रहस्य अल्पबुद्धि वाले मनुष्यों को समझाने के लिये उन सबके परम हित के उद्देश्य से पुराणों की रचना की।
भिन्न-भिन्न पुराणों में भिन्न-भिन्न देवताओं से भिन्न-भिन्न भाँति से सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और लय का क्रम बतलाया गया है। उन्होंने सबके लिये परम धाम पहुँचने का मार्ग सरल कर दिया। पुराणों में यह सिद्ध कर दिया है कि जो मुनष्यभगवान् के जिस नाम-रूप का उपासक हो, वह उसी को सर्वोपरि, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी, सम्पूर्णगुणाधार, विज्ञानानन्दघन परमात्मा माने और उसी को सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार करने वाले ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में प्रकट होकर क्रिया करने वाला समझें। उपासक के लिये ऐसा ही समझना परम लाभदायक और सर्वोत्तम है कि मेरे उपास्य देव से बढ़कर और कोई है ही नहीं। सब उसी का लीला-विस्तार या विभूति है।
वेदों में परमात्मा के दो स्वरूप माने गये है। एक निर्गुण ब्रह्म दूसरा सगुण ब्रह्म। सगुण ब्रह्म के भी दो भेद माने गये है- एक निराकार और दूसरा साकार। सगुण ब्रह्म को ही महेश्वर, परमेश्वर आदि नामों से पुकारा जाता है। वहीं सर्वव्यापी, निराकार, सृष्टिकर्त्ता परमेश्वर स्वयं ब्रह्मा, विष्णु, महेश इन तीनों रूपों में प्रकट होकर सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार किया करते हैं।
ये तीनों (ब्रह्मा, विष्णु और शिव) एक दूसरे से उत्पन्न हुए हैं, एक दूसरे को धारण करते हैं, एक दूसरे के द्वारा दृष्टिगत होते हैं और एक दूसरे के अनुकूल आचरण करते हैं। इन तीनों परब्रह्म परमात्मा को ही शिव के उपासक सदाशिव, विष्णु के उपासक महाविष्णु और शक्ति के उपासक महाशक्ति आदि नामों से पुकारते हैं। कहीं ब्रह्मा की प्रशंसा की जाती है, कहीं विष्णु की और कहीं महादेव की। उनका उत्कर्ष एवं ऐश्वर्य एक दूसरे की अपेक्षा इस प्रकार अधिक कहा है मानो वे अनेक हों। संक्षेप में जो पुरुष उन त्रिनेत्र, व्याघ्राम्बरधारी सदाशिव परमात्मा को निगुर्ण, निराकार एवं सगुण निराकार समझकर उनकी सगुण, साकार दिव्य मूर्ति की उपासना करता है, उसी की उपासना सच्ची और सर्वांगपूर्ण है।