सृष्टि मैं ईश्वर एक ही है, अनेक नहीं हो सकते। वह कण-कण में व्याप्त है। यदि दूसरा ईश्वर है तो अनेक उसके लिए दूसरा संसार चाहिए, व्याप्त होने के लिए। स्वयं सिद्ध एक ईश्वर के स्थान पर अनेकों ईश्वर बनाकर आज हम सभी बिखरे पड़े हैं।
हमारा मूल उद्देश्य एवं लक्ष्य इस कलिकाल के संतप्त, दुखी तथा अशांत एवं अस्थिर जीवन यापन करने वाले मनुष्यों के हृदय में सदाचरण, भक्ति, ज्ञान, वैराग्य का संचार कर परस्पर ईर्ष्या, द्वेष, उत्तेजना, अविश्वास तथा विश्व विनाश की प्रतियोगिता को समाप्त कर मानवता, विश्व बंधुत्व, आत्मीयता, प्रेम, सौहाद्र एवं सौजन्य के वायुमण्डल में एक दूसरे के पूरक होकर सर्वथा आदर्श ”वासुदेव कुटुंबकम“ की कल्पना को साकार रूप प्रदान करना है। इसके लिए आवश्यक है कि ईश्वर एक है और वह कौन है, इस मत पर संपूर्ण मानव जाति को एक मत होना होगा।
हम सब जानते हैं कि ईश्वर एक है और उस ईश्वर को हम ब्रह्म कहते हैं। हम यह भी जानते हैं कि वह निराकार है। यह भी मानते हैं कि निराकार की साधना संभव नहीं है, क्योंकि साकार के बिना उस में मन कैसे लगे। यद्यपि विश्व में धर्म को लेकर विभिन्न वैचारिक मतभेद हैं, विश्व के सभी धर्म श्रेष्ठ हैं क्योंकि उनका उद्गम स्थल ब्रह्म एक ही है। तथापि धर्मांतरण की प्रक्रिया एवं प्रयास भी निरंतर जारी है। क्योंकि हम अपने धर्म से शत-प्रतिशत इच्छाओं, आकांक्षाओं और ज्ञान एवं जिज्ञासाओं की पूर्ति होता हुआ नहीं पाते। आखिर इसका कारण और समाधान क्या है। अतः जब तक हमें इन प्रश्नों के उत्तर नहीं मिल जाते तब तक विश्व में धर्म को लेकर विभिन्न वैचारिक मतभेद समाप्त नहीं हो सकते। इसका केवल एक ही शास्त्रोक्त समाधान है, जिसका पालन विश्व के सभी धर्मावलंबियों द्वारा अपनाया जाना आवश्यक है।
ईश्वर निराकार है, इस सत्य में कोई मतभेद नहीं है। ईश्वर एक ही है इसमें भी कोई मतभेद नहीं है, किंतु वह एक ईश्वर कौन है, उनकी पूजा पद्धति क्या है इसमें मत-मतान्तर हैं। इसलिए अध्यात्म के क्षेत्र में एक सर्वमान्य सिद्धांत स्थापित करना संपूर्ण मानव जाति के कल्याण के लिए अनिवार्य है। तो आइए उस सिद्धांत को समझते हैं।
सर्वप्रथम सृष्टि के आरंभ में निराकार ब्रह्म लिंग नुमा आकृति में प्रत्यक्ष हुआ एवं उससे शब्द ब्रह्म ”ऊँ“ का प्रस्फुटन हुआ। यह दोनों (लिंग एवं ऊँ) निराकार ब्रह्म एक ईश्वर है। इस निराकार लिंग नुमा आकृति का किसी भी जाति धर्म एवं संप्रदाय से कोई आशय (लेना-देना) नहीं है क्योंकि यही संपूर्ण ब्रह्माण्ड का जनक एवं आधार स्तंभ है। इसी लिंग नुमा आकृति से विश्व के विभिन्न धर्म एवं संप्रदायों तथा उनके ईश्वर, देवता अथवा प्रवर्तक उत्पन्न या प्रकट हुए और शब्द ब्रह्म ”ऊँ“ से विभिन्न धर्म एवं संप्रदायों तथा मतावलंबियों का धर्म साहित्य प्रस्भुटित हुआ।
अतः संपूर्ण विश्व के प्रत्येक व्यक्ति को चाहे वह किसी भी जाति धर्म एवं संप्रदाय का अनुगामी क्यों न हो सर्वप्रथम निराकार ब्रह्म के प्रतीक लिंगानुरूप आकृति (शिवलिंग) पर जल अर्पित करना एवं निराकार ब्रह्म का शब्द ब्रह्म स्वरूप ”ऊँ“ का मानसिक अथवा वाचिक (जाप) करना आवश्यक है। क्योंकि इस लिंग एवं ऊँ की पूजा एवं आराधना किए बिना व्यक्ति (मनुष्य) को उसके द्वारा अपनाए गए धर्म अथवा संप्रदाय के अंतर्गत देवताओं कि, की हुई पूजा, इबादत, आराधना अथवा धार्मिक साहित्य के अध्ययन से मिलने वाले पुण्य का पूर्ण लाभ नहीं मिलता।
इसलिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह ब्रह्म के निराकार स्वरूप शिवलिंग पर एक लोटा जल तथा शब्द ब्रह्म के बाच्यार्थ शब्द ”ऊँ“ का जप प्रत्यक्ष (वाचिक) अथवा अप्रत्यक्ष (मानसिक) रूप से करें।
उपर्युक्त उद्देश्य की पूर्ति के लिए शिवा मिशन न्यास (रजि.) ग्वालियर मध्य प्रदेश द्वारा बाबा कैलाशी के आदेश से यह संकल्प लिया है कि देव नदी नर्मदा के जल से निकले हुए शिवलिंग की विश्व के प्रत्येक देश में उस देश के नागरिकों के कल्याण के लिए वहीं के निवासियों के माध्यम से स्थापना कराकर विश्व कल्याण एवं विश्व शांति की कामना का प्रयास किया जावे साथ ही प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, संप्रदाय का क्यों ना हो 02 से 03इन्च लम्बे नर्मदा से निकले शिवलिंग को अपने पूजा ग्रह में स्थान देकर जल एवं ”ऊँ“ मंत्र से उन्हें संतुष्ट करें तदोपरांत अपने धर्म में दी गई पूजा पद्धति का अनुसरण कर आत्म शांति, विश्व शांति, एकता एवं सद्भाव को हृदय में रख काम, क्रोध, लोभ एवं मोह पर विजय पाते हुए मोक्ष का पथ गामी वन जीवन चक्र से मुक्त हो सके।
यदि आप शिवा मिशन न्यास (रजि.) के जो बाबा कैलाशी के मार्गदर्शन में संचालित है सहमत हैं और जुड़ना चाहते हैं तो सम्पर्क कर सकते हैं।